
विवाह संस्कार
‘विवाह’ उसे कहते हैं कि जो पूर्ण ब्रह्मचर्यव्रत से विद्या बल को प्राप्त तथा सब प्रकार से शुभ गुण, कर्म, स्वभावों में तुल्य, परस्पर प्रीति युक्त होके सन्तानोत्पत्ति और अपने अपने वर्णाश्रम के अनुकूल उत्तम कर्म करने के लिए स्त्री और पुरुष का सम्बन्ध होता है।