सुख चाहे यदि नर जीवन में
जप ले प्रभु-नाम, प्रमाद न कर
है वो ही सुमरने योग्य सखा
बस और किसी को याद ना कर
सुख चाहे यदि नर जीवन में
जप ले प्रभु-नाम, प्रमाद न कर
अस्थिर हैं जग के ठाठ सभी
गर बिछुड़़ जाएँ अचरज ही क्या
हो शोक मोह के वशीभूत
सिर धुन कर पश्चाताप न कर
सुख चाहे यदि नर जीवन में
जप ले प्रभु-नाम, प्रमाद न कर
धन-माल बटोर अपार भले
पर इतना ध्यान अवश्य रहे
अपना घर-बार बसाने को
गैरों का घर बर्बाद न कर
सुख चाहे यदि नर जीवन में
जप ले प्रभु-नाम, प्रमाद न कर
पर-निन्दा को तजकर ‘प्रकाश’
आदर्श बना निज जीवन को
सत्-ज्ञान प्राप्त कर सज्जन से
दुर्जन से व्यर्थ विवाद ना कर
सुख चाहे यदि नर जीवन में
जप ले प्रभु-नाम, प्रमाद न कर
सुख चाहे यदि नर जीवन में
जप ले प्रभु-नाम, प्रमाद न कर
है वो ही सुमरने योग्य सखा
बस और किसी को याद ना कर
सुख चाहे यदि नर जीवन में
जप ले प्रभु-नाम, प्रमाद न कर
रचनाकार :- पण्डित श्री प्रकाशचन्द्र जी कविरत्न