यज्ञ शाला
इसी को ‘यज्ञमण्डप’ भी कहते हैं। यह अधिक से आधिक सोलह हाथ सम चौरस चौकोण, न्यून से न्यून आठ हाथ की हो। यदि भूमि अशुद्ध हो तो यज्ञशाला की पृथिवी, और जितनी गहरी वेदी बनानी हो, उतनी पृथिवी दो दो हाथ खोद अशुद्ध मिट्टी निकालकर उस में शुद्ध मिट्टी भरें। यदि सोलह हाथ की सम चौरस हो तो चारों ओर बीस खम्भे, और आठ हाथ की हो तो बारह खम्भे लगाकर उन पर छाया करें ।
वह छाया की छत वेदी की मेखला से दश हाथ ऊंची अवश्य होवे। और यज्ञशाला ने चारों दिशा में चार द्वार रखें और यज्ञशाला के चारों ओर ध्वजा पताका पल्लव आदि बांधें।
नित्य मार्जन तथा गोमय से लेपन करें और कुमकुम, हल्दी, मैदा की रेखाओं से सुभूषित किया करें। मनुष्यों को योग्य है कि सब मंगलकार्यों में अपने और पराये कल्याण के लिये यज्ञ द्वारा ईश्वरोपासना करें। (संस्कारविधि सामान्यप्रकरण )

यज्ञकुण्ड
जो लक्ष आहुति करनी हों तो चार-चार हाथ का चारों ओर सम चौरस चौकोण कुण्ड ऊपर और उतना ही गहरा और चतुर्थांश नीचे, अर्थात् तले में एक हाथ चौकोण लम्बा चौड़ा रहे। इसी प्रकार जितनी आहुति करनी हों, उतना ही गहिरा-चौड़ा कुण्ड बनाना, परन्तु अधिक आहुतियों में दो-दो हाथ अर्थात् दो लक्ष आहुतियों में छह हस्त परिमाण का चौड़ा और सम चौरस कुण्ड बनाना। और जो पचास हजार आहुति देनी हों तो एक हाथ घटावे। अर्थात् तीन हाथ गहिरा-चौड़ा सम चौरस और पौन हाथ नीचे तथा पच्चीस हजार आहुति देनी हों तो दो हाथ चौड़ा-गहिरा सम चौरस और आध हाथ नीचे। दश हजार आहुति तक इतना ही, अर्थात् दो हाथ चौड़ा-गहिरा सम चौरस और आध हाथ नीचे रखना। पांच हजार आहुति तक डेढ़ हाथ चौड़ा-गहिरा सम चौरस और साढ़े आठ अंगुल नीचे रहे। यह कुण्ड का परिमाण विशेष घृताहुति का है। यदि इसमें शामिल २५००(ढाई हजार) आहुति मोहनभोग, खीर और २५००(ढाई हजार) घृत की देवें तो दो ही हाथ का चौड़ा-गहिरा सम चौरस और आध हाथ का नीचे कुण्ड रखें।
चाहे घृत की हजार आहुति देनी हों तथापि सवा हाथ से न्यून चौड़ा-गहिरा सम चौरस और चतुर्थांश नीचे न बनावें। और इन कुण्डों में पन्द्रह अंगुल की मेखला अर्थात् पांच-पांच अंगुल की ऊंची तीन बनावें। और ये तीन मेखला यज्ञशाला की भूमि के तले से ऊपर करनी। प्रथम पांच अंगुल ऊंची और पांच अंगुल चौड़ी, इसप्रकार दूसरी और तीसरी मेखला बनावें। (संस्कारविधि सामान्य प्रकरण )
सूर्योदय के पश्चात् और सूर्यास्त के पूर्व अग्निहोत्र करने का भी समय है। उसके लिए एक किसी धातु वा मिट्टी की ऊपर १२ वा १६ अंगुल चौकोर उतनी ही गहिरी और नीचे ३ वा ४ अंगुल परिमाण से वेदी इसप्रकार बनावे अर्थात् ऊपर जितनी चौड़ी हो उसकी चतुर्थांश नीचे चौड़ी रहे। (सत्यार्थ प्रकाश तृतीयसमुल्लास )
अग्निहोत्र करने के लिए ताम्र वा मिट्टी की वेदी बना काष्ठ चाँदी वा सोने का चमसा अर्थात् अग्नि में पदार्थ डालने का पात्र और आज्यस्थाली अर्थात् घृतादि पदार्थ रखने का पात्र लेके, उस वेदी में ढाक वा आम्र आदि वृक्षों की समिधा स्थापन करके, अग्नि को प्रज्वलित करके पूर्वोक्त पदार्थों का प्रातःकाल और सायङ्काल अथवा प्रातःकाल ही नित्य होम करें।(ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पंचमहायज्ञविषय )
