वासन्ती नवसस्येष्टि ( होलकोत्सव )

वासन्ती नवसस्येष्टि ( होलकोत्सव ) ऋतुराज वसन्त विराज रहा, मनभावन है छवि छाज रहा।  बन-बागन में कुसुमावलि की, सुखदा सुषमा वह साज रहा ॥  यव गेहुँ चना सरसों अलसी, सब ही पक आज अनाज रहा।  यह देख मनोहर दृश्य सभी, अति हर्षित होय समाज रहा ॥  उपलक्ष्य इसे करके जग में, शुभ होलक-उत्सव हैं करते। …

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यज्ञ, वेद प्रचार कार्यक्रम और उत्सव आदि सफल बनाने के लिए आवश्यक निर्देश

यज्ञ, वेद प्रचार कार्यक्रम और उत्सव आदि सफल बनाने के लिए आवश्यक निर्देश होम ( अग्निहोत्र ) के लिए आवश्यक सामग्री – होम के द्रव्य चार प्रकार (प्रथम-सुगन्धित) कस्तूरी, केशर, अगर, तगर, श्वेतचन्दन, इलायची, जायफल, जावित्री आदि (द्वितीय-पुष्टिकारक) घृत, दूध, फल, कन्द, अन्न, चावल, गेहूं, उड़द, आदि। (तीसरे-मिष्ट) शक्कर, सहत, छुवारे, दाख आदि। (चौथे-रोगनाशक) सोमलता…

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शालाकर्म विधि

अथ शालाकर्मविधिं वक्ष्यामः ‘शाला’ उस को कहते हैं—जो मनुष्य और पश्वादि के रहने अथवा पदार्थ रखने के अर्थ गृह वा स्थानविशेष बनाते हैं। इस के दो विषय हैं-एक प्रमाण और दूसरा विधि। उस में से प्रथम प्रमाण और पश्चात् विधि लिखेंगे। अत्र प्रमाणानि— उपमितां प्रतिमितामथो परिमिताम् उत। शालाया विश्ववाराया नद्धानि वि चृतामसि॥1॥ हविर्धानमग्निशालं पत्नीनां सदनं…

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विवाह संस्कार के लिए आवश्यक सामग्री

विवाह संस्कार के लिए आवश्यक सामग्री १ किलोग्राम – घृत ( घी ) ५०० ग्राम – हवन सामग्री ( गुरुकुल कांगड़ी/ एम०डी०एच०/ पतञ्जलि या आर्य समाज की उत्तम सामग्री होनी चाहिए ) सामग्री में मिलाने हेतु पदार्थ — १०० ग्राम – बूरा या गुड या शक्कर  ५० ग्राम – जौ या तिल या चावल  १००…

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होम ( अग्निहोत्र ) के लिए आवश्यक सामग्री

होम ( अग्निहोत्र ) के लिए आवश्यक सामग्री होम के द्रव्य चार प्रकार (प्रथम-सुगन्धित) कस्तूरी, केशर, अगर, तगर, श्वेतचन्दन, इलायची, जायफल, जावित्री आदि (द्वितीय-पुष्टिकारक) घृत, दूध, फल, कन्द, अन्न, चावल, गेहूं, उड़द, आदि। (तीसरे-मिष्ट) शक्कर, सहत, छुवारे, दाख आदि। (चौथे-रोगनाशक) सोमलता अर्थात् गिलोय आदि औषधियाँ।  (संस्कारविधि सामान्यप्रकरण ) ५०० ग्राम – घृत ( घी )…

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वैदिक सन्ध्या उपासना 

वैदिक सन्ध्या उपासना  ( महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज द्वारा निर्देशित आर्यों की दिनचर्या ) ‘सन्ध्यायन्ति सन्ध्यायते वा परब्रह्म यस्यां सा सन्ध्या ‘ भली भांति ध्यान करते हैं वा जिसमें परमेश्वर का ध्यान किया जाये वह सन्ध्या है। सो रात और दिन के संयोग समय दोनों सन्ध्याओं में सब मनुष्यों को परमेश्वर की स्तुति, प्रार्थना…

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यज्ञशाला एवं यज्ञकुण्ड

यज्ञ शाला              इसी को ‘यज्ञमण्डप’ भी कहते हैं। यह अधिक से आधिक सोलह हाथ सम चौरस चौकोण, न्यून से न्यून आठ हाथ की हो। यदि भूमि अशुद्ध हो तो यज्ञशाला की पृथिवी, और जितनी गहरी वेदी बनानी हो, उतनी पृथिवी दो दो हाथ खोद अशुद्ध मिट्टी निकालकर उस में…

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दैनिक‌ सायंकालीन यज्ञ ( अग्निहोत्र ) विधि

( महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज द्वारा निर्देशित आर्यों की दिनचर्या ) आचमन ओम् अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा॥1॥ इस से एक। ओम् अमृतापिधानमसि स्वाहा॥2॥ इस से दूसरा। ओं सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा॥3॥ अङ्गस्पर्श इस से तीसरा आचमन करके, तत्पश्चात् नीचे लिखे मन्त्रों से जल करके अंगों का स्पर्श करें— ओं वाङ्म आस्येऽस्तु॥1॥ इस मन्त्र से मुख।…

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जन्माष्टमी पर्व पर यज्ञ

महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज की दृष्टि में योगेश्वर श्रीकृष्ण जी‌ महाराज – ‘‘देखो! श्रीकृष्ण जी का इतिहास महाभारत में अत्युत्तम है। उन का गुण, कर्म, स्वभाव और चरित्र आप्त पुरुषों के सदृश है। जिस में कोई अधर्म का आचरण श्रीकृष्ण जी ने जन्म से मरण-पर्यन्त बुरा कुछ भी किया हो ऐसा नहीं लिखा, और…

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श्रावणी उपाकर्म एवं वेद स्वाध्याय पर्व, ऋषि तर्पण, रक्षाबन्धन, यज्ञोपवीत पर्व, वेद प्रचार पर्व

श्रावणी पर्व जो कि प्राचीनकाल काल से उपाकर्म, उत्सर्जन, वेद स्वाध्याय, ऋषि तर्पण और वर्षाकालीन वृहद् यज्ञ ( वर्षाचातुर्मास्येष्टि ) आदि नामों से प्रचलित है। यह विशेष पर्व है। इसे बड़ी धूम-धाम से मनाना चाहिए। आज के दिन किये जाने वाले यज्ञ की विधि इस प्रकार है – ० आचमन ० अङ्गस्पर्श ० यज्ञोपवीत धारण…

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