दैनिक‌ प्रातः कालीन यज्ञ ( अग्निहोत्र ) विधि

तू सर्वेश सकल सुखदाता, शुद्ध स्वरूप विधाता है।

उसके कष्ट नष्ट हो जाते, जो तेरे ढिंग आता है।।

सारे दुर्गुण-दुव्र्यसनों से, हमको नाथ बचा लीजे।

मंगलमय गुण कर्म पदारथ, प्रेम सिन्धु हमको दीजे ।।

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दैनिक यज्ञ ( अग्निहोत्र‌ ) विधि

अग्निहोत्र – अग्नये परमेश्वराय जलवायुशुद्धिकरणाय च होत्रं हवनं यस्मिन कर्मणि क्रियते तदग्निहोत्रम्।
अग्नि वा परमेश्वर लिए जल और पवन की शुद्धि वा ईश्वर की आज्ञा पालन के अर्थ होत्र जो हवन अर्थात् दान करते हैं , उसे अग्निहोत्र कहते हैं।

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विशेष यज्ञ विधि ( सामान्य प्रकरण सहित )

अर्थ—हे (सवितः) सकल जगत् के उत्पत्तिकर्ता, समग्र ऐश्वर्ययुक्त, (देव) शुद्धस्वरूप, सब सुखों के दाता परमेश्वर ! आप कृपा करके (नः) हमारे (विश्वानि) सम्पूर्ण (दुरितानि) दुर्गुण, दुर्व्यसन और दुःखों को (परा सुव ) दूर कर दीजिये। (यत्) जो (भद्रम्) कल्याणकारक गुण, कर्म, स्वभाव और पदार्थ हैं, (तत्) वह सब हम को (आ सुव) प्राप्त कीजिए॥1॥

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विवाह संस्कार

‘विवाह’ उसे कहते हैं कि जो पूर्ण ब्रह्मचर्यव्रत से विद्या बल को प्राप्त तथा सब प्रकार से शुभ गुण, कर्म, स्वभावों में तुल्य, परस्पर प्रीति युक्त होके सन्तानोत्पत्ति और अपने अपने वर्णाश्रम के अनुकूल उत्तम कर्म करने के लिए स्त्री और पुरुष का सम्बन्ध होता है।

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