1. महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज द्वारा निर्देशित कल्याणकारी वैदिक सिद्धान्तों को मानना व प्रचार करना इस न्यास का मुख्य उद्देश्य होगा।
2. सार्वभौम सुख एवं शान्ति के लक्ष्य को ध्यान में रख विश्व में वैदिक धर्म, वैदिक संस्कृति तथा वैदिक सभ्यता के आधार पर सर्वसाधारण तथा युवकों/युवतियों और बालक/बालिकाओं में उचित उपायों द्वारा वैदिक संस्कार, चरित्र निर्माण, नैतिकता एवं स्वदेश प्रेम के भाव उत्पन्न करके ‘‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’’ (ऋग्वेद ९/६३/५) ख्सारे विश्व को आर्य (श्रेष्ठ) बनाये, के उद्देश्य की पूर्ति करना।
3. ‘‘अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्तु’’ (ऋग्वेद १॰/१॰३/११) अर्थात् हमारे वीर श्रेष्ठ हों। ऋग्वेद के इस वाक्य को चरितार्थ करने के लिए नवयुवकों/नवयुवतियों में शारीरिक उन्नति की योग्यता उत्पन्न करने के साथ-साथ आत्मरक्षा, मानसिक एवं आत्मिक विकास, सौहार्द, सेवा, त्याग तथा पुरूषार्थ की प्रवृत्ति का पोषण करना/निर्माण करना।
4. मानव मात्र की सेवा सहयोग तथा सहायता करके ‘‘पुमान् पुमांसं परिपातु विश्वतः’’ (ऋग्वेद ६/७५/१४) (मानव सर्वात्मना मानव मात्र की सहायता और सुरक्षा करें) ऋग्वेद के इस मानवीय भाव को सभी में जागृत करना।
5. वैदिक धर्म, दर्शन, शिक्षा, साहित्य, सिद्धान्त, संस्कृति, सभ्यता, ज्ञान-विज्ञान, यज्ञ, योग, आयुर्वेद चिकित्सा आदि की अनेक प्रकार की कक्षाओं, चर्चाओं, संवाद गोष्ठियों (सेमिनारों), शिविरों, व्याख्यान मालाओं, कथाओं, प्रवचनों, पारिवारिक सत्संगों, परीक्षाओं आदि का विभिन्न प्रकार के माध्यमों द्वारा सर्वत्र प्रचार और प्रसार करना।
6. स्वस्थ, समर्थ व शक्तिशाली राष्ट्रनिर्माण के लिए विधेयात्मक, सृजनात्मक जीवन निर्माण के लिए चरित्रवान्, संस्कारवान्, उत्तम सन्तानों के निर्माण के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन करना एवं सरल, सुबोध, ज्ञानवर्धक उच्चकोटि के साहित्य का निर्माण करना एवं प्रकाशित करना।
7. पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं वैश्विक आदि सभी प्रकार की समस्याओं विसंगतियों, कुरीतियों, अन्धविश्वासों एवं पाखण्ड आदि को समाप्त कर परिवार, समाज, राष्ट्र और सम्पूर्ण विश्व में सुख-शान्ति, प्रेम और निर्भीकता की स्थापना करना।
8. वेद वेदाङ्गादि सत्य शास्त्रों के प्रचार-प्रसार अर्थात् उनकी व्याख्या करने-कराने, पढ़ने-पढ़ाने, सुनने-सुनाने, प्रकाशित करने-कराने, यज्ञ, योग, साधना, आयुर्वेद आदि में सन्नद्ध या संलग्नजनों के परिरक्षण, सहायता आदि के कार्य करना तथा जाति, रंग एवं पन्थ का भेदभाव किये बिना उन्हें औषधियां, ग्रन्थ, वृत्तिपदक प्रदान करने के साथ-साथ प्रोत्साहन तथा सहयोग प्रदान करना।
9. उपेक्षित जनों या जरूरतमन्दों, अनाथों या निराश्रितों, असहायों, निर्धनों, विधवाओं तथा अन्य पात्र स्त्री पुरूषों को राहत और सहायता प्रदान करने वाले सेवा केन्द्रों, अनाथालयों अथवा इस प्रकार के केन्द्रों, संस्थानों की स्थापना करके सुपात्रों, निराश्रितों, निर्धनों या विकलांगों आदि की रंग, पन्थ आदि भेदभाव किये बिना सहयोग प्रदान करना।
10. अतिवृष्टि या अनावृष्टि, भूकम्प, अग्निकाण्ड, महामारी तथा इस प्रकार के अन्य संकटों में राहत कार्य करना और इस प्रकार के राहत कार्यों में संलग्न संस्थाओं, केन्द्रों अथवा व्यक्तियों को दान देने, चन्दा देने, अंशदान करने, निराश्रितों, निर्धनों की शिक्षा, चिकित्सा, व्यक्तिगत लाभ से रहित सार्वजनिक महत्व के उद्देश्यों की पूर्ति में संचालित योजनाओं की सहायता करना एवं सर्वसाधारण के उपयोगार्थ, पार्कों (उद्यानों), यज्ञशालाओं, खेल केन्द्रों, व्यायामशालाओं, पेयजल की पूर्ति हेतु नलकूपों, कुओं, जलाशयों आदि का निर्माण करना।
11. वैदिक गुरुकुलों, गोशालाओं, योगाश्रमों, वानप्रस्थ व सन्यास आश्रमों, अनाथालयों, संस्कृत प्रतिष्ठानों, अनुसंधान केन्द्रों, औषध निर्माण केन्द्रों, कला केन्द्रों, पुस्तकालयों, वाचनालयों, छात्र-छात्राओं एवं जन सामान्य के कल्याणार्थ शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना व संचालन करना।
12. पर्यावरण संरक्षण एवं पर्यावरण शुद्धि हेतु यज्ञ, वृक्षारोपण तथा स्वच्छता के कार्यक्रम संचालित करना।
13. अशिक्षा, हिंसा, गोवध, भ्रूण हत्या, मद्यपान, धूम्रपान, मांसाहार, तम्बाकू, गुटखा, पान मसाला भक्षण, अश्लीलता आदि के विरूद्ध जनजागृति पैदा करना।
14. वैदिक शिक्षा, सिद्धान्त व मानवीय मूल्यों को प्रचारित व स्थापित कर कल्पित जातिवाद व मजहबी संकीर्णताओं का उन्मूलन करना।
15. ऊँच-नीच, अगड़े-पिछड़े, दलित-सवर्ण, स्त्री-पुरूष, युवा-वृद्ध सभी प्रकार के भेद-भाव से रहित होकर सभी को अध्यात्मिक उन्नति का समान अवसर प्रदान करना तथा एक दिव्य जीवन जीने की अभीप्सा उत्पन्न करना।
16. नागरिकों के सर्वांगीण विकास हेतु स्वच्छता, साक्षरता, मातृ-शिशु पोषण, महिला एवं बाल विकास हेतु कार्यक्रम चलाना व जागरूकता शिविरों का आयोजन करना।
17. समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों, गोष्ठियांे, स्वास्थ्य रक्षा शिविरों, राहत शिविरों, नेत्र रक्षा शिविरों, जन-जागृति शिविरों कला प्रदर्शनी का आयोजन करना तथा निःशुल्क प्रौढ़ शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम, बालश्रम उन्मूलन कार्यक्रम, गरीबी उन्मूलन, मद्य निषेध कार्यक्रम चलाना।
18. राजभाषा हिन्दी (आर्य भाषा) व देव भाषा संस्कृत सहित समस्त क्षेत्रीय भाषाओं को प्रोत्साहित करना।
19. समाज में भटके हुये व्यक्ति विशेषकर जेल में कैदियों के मध्य, जेल प्रशासन की अनुमति से आध्यात्मिक विचारों का प्रचार प्रसार करना।
20. समाज सुधार, राष्ट्रोत्थान एवं सभी प्रकार के लोकहितकारी कार्यक्रमों का संचालन करना।
21. वैदिक साहित्य का प्रकाशन, विक्रय एवं वितरण करना।
22. वैचारिक उन्नति एवं जन जागरण के लिए पत्रिका का प्रकाशन करना।
23. वैदिक वैवाहिक सेवा (मैरिज ब्यूरो) संचालित करना तथा तथाकथित (कपोल कल्पित) जातिवाद से रहित समान गुण, कर्म, स्वभाव युक्त वैदिक वर्णव्यवस्था को प्रोत्साहन प्रदान करना।
24. रक्तदान शिविरों एवं स्वास्थ्य रक्षा के कार्यक्रमों का संचालन करना।
25. धर्म शिक्षा, संस्कार शिक्षा, नैतिक शिक्षा एवं चरित्र निर्माण की कक्षाओं/ शिविरों का संचालन करना।
26. दैनिक एवं विशेष यज्ञों तथा सोलह संस्कारों का ज्ञान, महत्ता एवं प्रशिक्षण प्रदान करना।
27. आध्यात्मिक व्याख्यानों, सत्संगों, कथाओं, प्रवचनों एवं विभिन्न प्रकार के यज्ञ आदि कार्यों का आयोजन करना।
28. गुरुकुल, गोशाला, अनाथालय, निर्धन छात्र-छात्रा, असहाय, अनाथों की सहायता एवं आकस्मिक विपदा निवारण कार्य करना।
29. वैदिक धर्म, सिद्वान्त परिचय, महत्ता, आध्यात्मिक ज्ञान, संवर्धन एवं शंका समाधान कार्यक्रम संचालित करना।
30. विषमुक्त एवं पोषणयुक्त कृषि एवं बागवानी को बढ़ावा देने के लिये कृषक वर्ग को जागरूक करना तथा समय-समय पर किसान सम्मेलन करना, शिविर लगाना, प्रशिक्षण देना आदि।
महर्षि दयानन्द योगपीठ द्वारा वेद प्रचार और समाज सुधार से सम्बन्धित उपरोक्त योजनाबद्ध कल्याणकारी गतिविधियां निरन्तर चलायी जारही हैं। जिनसे ऋषि मिशन – कृण्वन्तो विश्वमार्यम् को गति प्रदान की जा सके। यदि आप सहयोगी बनाना चाहे जो बड़ी कृपा होगी। आप हमें सूचित करें हम आपसे सम्पर्क करेंगे। सम्पर्क सूत्र – 9897060822
न्यास की बैंक का विवरण निम्नलिखित है – आपका सहयोग हमें सम्बल प्रदान करेगा।
MAHARSHI DAYANAND YOGPEETH NYAS
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