प्रचारक बनने के लिए आवश्यक नियम निर्देश

    संसार का प्रथम गुरू, आचार्य और उपदेशक परमेश्वर है। परमेश्वर से ज्ञान प्राप्त करके मनुष्यों में यह मार्गदर्शन की श्रृंखला अग्नि, वायु, आदित्य और अङ्गिरा ऋषियों से आरम्भ हुई है। ब्रह्मा से लेकर अनेक ऋषि, आचार्य, उपदेश तैयार हुए हैं। ये सभी परमेश्वर के प्रदत्त ज्ञान ‘वेद’ का प्रचार करते थे‌। करोड़ों वर्षों तक वैदिक सिद्धान्तों का प्रचार होता रहा और सभी उनका व्यवहार में पालन करते रहे। इसीलिए सभी सुखी थे।

     लगभग ७ हजार वर्ष पूर्व से वेद प्रचार का कार्य बाधित हुआ, मानव निर्माण का कार्य प्रभावित हुआ इसीलिए पतन होता गया। गुरुवर स्वामी विरजानन्द सरस्वती जी महाराज के शिष्य महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज के द्वारा पुनः वेदप्रचार का कार्य आरम्भ हुआ।

       महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज ने यह अनुभव किया कि वेदप्रचार के लिए अनेक उपदेशक/प्रचारक होने चाहिए ।

      स्वामी श्रद्धानन्द, पं० लेखराम, गुरुदत्त विद्यार्थी जैसे अनेक ऋषि भक्तों ने इस कार्य को आगे बढ़ाया और अनेक प्रचारक/उपदेशक तैयार किये जिन्होंने पुरुषार्थ करके यह वेदप्रचार का कार्य पूरे विश्वभर में किया है। 

     इसी क्रम में आगरा में पं०लेखराम जी की स्मृति में मुसाफिर उपदेशक विद्यालय चलाया गया जिसमें पं० भोजदत्त जी के पुरुषार्थ से अनेक प्रचारक/उपदेशक तैयार हुए। कुंवर सुखलाल आर्य मुसाफिर, अमर स्वामी जी महाराज जैसे विद्वान इस विद्यालय से निकले। उपदेशक निर्माण की आवश्यकता को देखते हुए अनेक उपदेशक विद्यालय भी चले और अनेक गुरुकुलों के आचार्यों ने भी अनेक उपदेशक तैयार किये।

         आर्य पुरोहित सभा द्वारा २७ मई २०२१ से ओन लाइन पुरोहित प्रशिक्षण का कार्य दो वर्ष तक किया गया। 

  1. दिनचर्या – ब्रह्म मुहूर्त में जागरण, शौचादि से निवृत्त होकर आसन, प्राणायाम, व्यायाम सन्ध्या, यज्ञ और वेदपाठ आदि।
  1. कर्तव्य पालन, माता-पिता की सेवा, बड़ों का आदर, विद्वानों का सत्कार और सभी से विनम्र व्यवहार।
  1. पाठ्यक्रम का अध्ययन, प्रवचन तैयार करना, मन्त्र, श्लोक, सूत्र एवं दृष्टान्त याद करना, निरन्तर योग्यता बढ़ाना ।
  1. संवाद कला ( विचार प्रस्तुतिकरण ) को उत्तम बनाना
  1. बोलना एक कला है जिससे बोलना आता है वह अपना कोई भी सामान बेच सकता है। अपना कोई भी कार्य सिद्ध करा सकता है। ऐसे लोगों को वाणी का जादूगर कहते हैं, ये लोग वशीकरण/सम्मोहन कर देते हैं। इसके लिए योग्यता के साथ बोलने की कला आनी चाहिए।
  1. आपने बसों में देखा होगा सामान/चूर्णादि बेचने वाले अपनी वाक् पटुता से आसानी से बेच जाते हैं।
  1. कम्पनी के प्रचारक, साम्प्रदायिक प्रचारक, बीमा एजेन्ट अपना काम वाक् चातुर्य से ही कर रहे हैं। ये लोग कहते हैं एकवार सुन तो लीजिए या एक बार उनसे हमें मिलाइए तो सही।
  1. जिसे बोलना नहीं आता वह अपने शत्रु बना लेता है, अपने अच्छे सामान को भी नहीं बेच पाता है।
  1. बोलना परमेश्वर का वरदान है परिवार की देन है तथा प्रशिक्षण से सजाया और संभाला जा सकता है इसीलिए प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
  1. आर्य समाज अपने उद्देश्य में सफल होना चाहता है तो योजनाबद्ध प्रशिक्षण देकर उपदेशक, प्रचारक,पुरोहित और कार्यकर्ता तैयार करके सघन प्रचार किया जाना चाहिए।
  1. अनेक वर्षों से उपदेश सुनते-सुनते कुछ अनुभव हुए हैं। जैसे कुछ उपदेशकों के व्याख्यान बहुत अच्छे होते हैं, विषयगत होते हैं, प्रभावी होते हैं। कुछ उपदेशकों के व्याख्यान विषयगत नहीं होते हैं संचालक के अनेक बार कहने पर कि विषय पर आइए तो भी विषय से अलग ही बोलते हैं। कुछ उपदेशकों के व्याख्यान सीमित है चाहे आप उन्हें कितनी ही वार सुनें। कुछ व्याख्यान बहुत कठिन किये जाते है, श्रोताओं के स्तर का ध्यान नहीं रखा जाता, जो श्रोताओं की समझ में ही नहीं आते हैं। वक्ता के द्वारा समय का पालन नहीं किया जाता। कुछ वक्ताओं को लगता है कि आज ही और इसी सभा में सारा ज्ञान पिलाकर रहुंगा। बहुत अधिक बोलने से ही समझेंगे या अधिक समय का कार्यक्रम रखने से ही प्रचार ठीक होगा। जबकि ऐसा नहीं है। प्रवचन/व्याख्यान भोजन की तरह ही है जिसकी सीमा होनी चाहिए।  अनेक बार उदाहरण प्रामाणिक नहीं होते हैं। कुछ व्याख्यानों में कभी कभी असैद्धान्तिक चर्चा भी हो जाती है। उन्हें ठीक करने की आवश्यकता है।
  1. वक्ता के द्वारा आयोजकों के साथ उचित व्यवहार करना चाहिए।
  1. चोटी, यज्ञोपवीत, वक्ता की वेशभूषा, हाउ-भाव एवं बैठने और खड़े होने का तरीका ठीक होना चाहिए।
  1. भाषा-शैली उत्तम होनी चाहिए।
  1. व्याख्यान का आरम्भ और समापन प्रभावी होना चाहिए।
  1. एक रस से युक्त या केवल गम्भीर व्याख्यान अधिक देर तक नहीं सुना जाता। इसीलिए सम्बोधन से लेकर समापन तक चर्चा नव रसों ( एक से अधिक रसों ) से युक्त होनी चाहिए।
  1. व्याख्यान में मन्त्र, श्लोक, कहानी, कविता सूत्रादि सम्मिलित होने चाहिए।
  1. व्याख्यान तथ्य और प्रमाणों से युक्त होना चाहिए ।
  1. उपस्थिति के अनुसार अपनी आवाज का स्तर रखना चाहिए। आपकी आवाज आखिरी श्रोता तक अवश्य पहुंचनी चाहिए।
  1. माइक पर कैसे बोलना है यह भी आवश्यक बिन्दु है।
  1. श्रोताओं का स्तर और क्षेत्र जानकर ही व्याख्यान प्रभावी बनाया जासकता है।
  1. यदि आपको एक ही चर्चा में अनेक बिन्दुओं को रखना है तो सभी बिन्दुओं को उचित समय देना ।
  1. ऐतिहासिक घटनाओं को रखने में भी प्रत्येक घटना को सन्तुलित समय देना चाहिए।
  1. महात्मा विदुर और महाराज धृतराष्ट्र के मध्य संवाद और ऐसे ही अनेकों ऐतिहासिक संवादों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।
  1. वीडियो रिकॉर्डिंग या लाइव होरहे कार्यक्रम में वक्ता, श्रोता और मंच पर बैठने वालों को भी सावधानी से बैठना चाहिए ।
  1. अध्यापन कार्य के लिए बी०एड० जैसे पाठ्यक्रम जितने आवश्यक है उतना ही उपदेशक प्रशिक्षण भी आवश्यक है। 
  1. प्रचारक बनने के लिए पाठ्यक्रम- 

आपने आचार्य/गुरु/प्रशिक्षक से अपना मूल्यांकन कराना।

प्रतिदिन वेदपाठ करना।

प्रतिदिन एक मन्त्र या एक श्लोक या एक कविता या एक छन्द या एक दृष्टान्त याद करना।

प्रतिदिन स्वाध्याय करके / प्रवचन सुनकर / वीडियो देखकर व्याख्यान के लिए सामग्री संग्रह करना। अलग-अलग विषय के विचारों को अलग-अलग विषयगत संग्रह करना।

प्रवचन करने के लिए स्वाभाविक बोलकर प्रवचन का अभ्यास करना ( उपदेशकों की शैली की नकल नहीं करनी चाहिए अपनी शैली सरल और स्वाभाविक होनी चाहिए )। और स्वयं की रिकॉर्डिंग करके सुनना और प्रवचन में सुधार करना।

16 thoughts on “प्रचारक बनने के लिए आवश्यक नियम निर्देश

  1. Nice
    प्रचारक कक्षा में मैं भी ज्वाइन करना चाहूंगा आचार्य

  2. बहुत अच्छा विचार / योजना / प्रयास है।
    मैं जहां और जैसे उपयोगी बन पाऊंगा, अवश्य सहकार और सहयोग रहेगा।
    क्रियान्वय करने की आगामी योजना से भी अवगत रखिएगा।
    धन्यवाद।
    जिज्ञासु योग वेद साधक दिलीप!
    M: 9821377003.

  3. कृपया मुझे भी ६ जनवरी से प्रारंभ होने वाली इस कक्षा में सम्मिलित होने की अनुमति प्रदान करने की कृपा करें।
    सम्पर्क सूत्र: ९६९००७५६६५

  4. श्रद्धेय आचार्य जी सादर नमस्ते आपके कार्यक्रमों की रूपरेखा को मैंने अच्छी प्रकार से पढ़ लिया है मैं इन सभी कार्यक्रमों का अक्षरशः पालन करने का प्रयास करूंगा। मैं प्रचारक पुरोहित प्रशिक्षण आपके सान्निध्य में पूरा करना चाहता हूं। यद्यपि मैंने आदरणीय स्वामी शरणानंद जी महाराज के सान्निध्य में संस्कार विधि का पूरा प्रशिक्षण लिया है फिर भी मनुष्य में कमियां बहुत रहती हैं और बर्तन को बार-बार माजने से ही बर्तन स्वच्छ होता है इस प्रकार मेरी भी यही स्थिति है। जितना मुझे आपका सान्निध्य मिलेगा मैं उतना ही परिष्कृत होने का प्रयास करूंगा ताकि ईश्वर के और ऋषि के मिशन को आगे बढ़ा सकूं। पुरोहित का कार्य लगन और ईमानदारी से कर सकूं तथा जो भी पुरोहित से आय प्राप्त होगी उस आय को आर्य समाज अथवा गुरुकुलों में अंशदान देने का वचन देता हूं।

    1. प्रशिक्षण के लिए ६ जनवरी २०२५ से सप्ताह के प्रत्येक सोमवार और मंगलवार को रात्रि ८:०० बजे ९:०० बजे तक गूगल मीट पर ओन लाइन कक्षा रहेगी।

      कक्षा के लिए लिंक निम्नलिखित है जिसे क्लिक करके आप जुड़ सकेंगे –

      https://meet.google.com/pjs-kszi-gdm

      इच्छुक भाई/बहन व्यवहार भानु, संस्कार विधि , एक नोटबुक या डायरी ( दैनन्दिनी ) और पेन ( लेखनी ) के साथ कक्षा में उपस्थित हो सकते हैं।

  5. आचार्य जी को सादर प्रणाम
    मैं प्रचारक और पुरोहित प्रशिक्षण की कक्षा में सम्मिलित होना चाहता हूं। मुझे आपकी इन कक्षाओं में उक्त प्रशिक्षण प्राप्त करने का अवसर प्रदान करने की कृपा करें।
    पंडित राम प्रसाद आर्य विद्यार्थी पुत्र श्री सुखदेव
    म सं 375, शिव मंदिर, तालाब के पास, ग्राम पोस्ट सराधना, ज़िला अजमेर (राजस्थान) पिन 305206 मोबाइल नंबर 9462471560, 9079328121

  6. आचार्य जी सादर नमस्ते
    मैं राजीव आर्य बिजनौर उत्तर प्रदेश से हूँ महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के सिद्धांतानुसार जीवन जीने का प्रयास कर रहा हूँ । और भविष्य में एक मिशनरी स्वतंत्र प्रचारक के रूप में कार्य करने की अभिलाषा रखता हूँ । यदि आपका मार्गदर्शन और आशीर्वाद मिले तो अभिलषित कार्य सिद्धि प्राप्त होने में कोई संशय नहीं ।

  7. मैं और परिवार 100 वर्षों से भी अधिक अधिक से आर्य समाज से संबंधित हैं मेरी शिक्षा भी दिल्ली के एक आर्य समाज स्कूल से हुई हैं और प्रचारक कर्तव करने के उत्साहित हूँ कृपा कर मार्ग दर्शन करे

  8. मैं विजय कुमारी चण्डीगढ़ से हूँ , मैं सैक्टर १८ आर्य समाज मैं उपमत्राणी हूँ मेरी दिलसे कमाना है क्लास मे शामिलहोने की

  9. परम आदरणीय श्री अग्निहोत्री जी , सादर नमस्ते ।
    मैं भी प्रचारक की कक्षा में शामिल होना चाहता हूं ।
    हमारा परिवार आर्य परिवार है ।हम वडोदरा गुजरात में रहते हैं ।
    मैं 1976 से आर्य समाज से जुड़ा हूं ।
    प्रचारक बनने से मुझे स्वयं लाभ होगा साथ ही मैं समाज के काम आ सकूंगा ।

  10. आचार्य जी सादर नमस्ते
    मैं योजना मधुकर बोरावले मुंबई से हूॅ
    मैं सनातनी हिंदू हूं , आर्य समाज के कार्यों से प्रेरित हूं,
    लाकरोडा मे हूए यज्ञ चिकित्सा महोत्सव में सामिल थी.
    मै प्रचारक एवं उपदेशक बनना चाहती हूं

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